Tuesday, January 21, 2020

Gita Gopinath ने क्यों कहा कि भारत की सुस्ती का दुनिया पर असर होगा

इन आंकड़ों से ये तो अंदाज़ा हो ही जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है. नरेंद्र मोदी सरकार के तमाम दावों के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर कम हो रही है.

आईएमएफ़ ने दावोस में चल रही विश्व आर्थिक मंच की बैठक में कहा कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में नॉन बैंकिंग वित्तीय सेक्टर यानी एनबीएफ़सी में दिक्कतों और मांग में कमी के कारण आर्थिक वृद्धि में धीमापन आ रहा है.

आईएमएफ़ के ताजा अनुमान के अनुसार 2019 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 2.9 प्रतिशत, 2020 में 3.3 प्रतिशत और 2021 में 3.4 प्रतिशत रहेगी. वहीं मुद्राकोष ने भारत के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को कम कर 2019 के लिए 4.8 प्रतिशत कर दिया है. पिछले तीन महीने में आईएमएफ़ ने 1.3 फ़ीसदी की कमी की है.

जबकि 2020 और 2021 में इसके क्रमश: 5.8 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है.

भारत के आर्थिक वृद्धि अनुमान में कमी के कारण दो साल की वृद्धि दर में 0.1 प्रतिशत तथा उसके बाद के वर्ष के लिए 0.2 प्रतिशत की कमी की गई है.

मुद्राकोष ने भारत के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को कम कर 2019 के लिए 4.8 प्रतिशत कर दिया है. इसका मुख्य कारण गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में दिक्कतें और गांवों में आमदनी बढ़ने में कमी आना है.

आईएमएफ़ के अनुसार 2020 और 2021 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.8 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत रहेगी.

रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बड़ी चिंता क्रेडिट ग्रोथ में कमी आना है यानी लोग कर्ज़ कम ले रहे हैं, इसकी वजह उनकी आमदनी में कमी आना हो सकता है.

भारतीय न्यूज़ टेलीविज़न एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में गोपीनाथ ने कहा कि साल 2019 में दुनियाभर के कई हिस्सों में सामाजिक असंतोष बढ़ा है. चिली और हॉन्ग कॉन्ग इसके उदाहरण हैं.

उन्होंने कहा कि भारत में चल रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों को लेकर उन्होंने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कुछ नहीं किया है, लेकिन वो इतना कहना चाहेंगी कि इस तरह के आंदोलनों का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.

भारत में कई राज्यों में नागरकिता संशोधन क़ानून के विरोध में धरना प्रदर्शन हो रहे हैं. विपक्षी दल इसे भारत के संविधान के ख़िलाफ़ बता रहे हैं, जबकि मोदी सरकार का कहना है कि विपक्ष जानबूझकर जनता को गुमराह कर रहा है.

दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भारत की सुस्ती के बारे में गोपीनाथ ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है. उन्होंने कहा कि भारत की जीडीपी में गिरावट का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.

आईएमएफ़ की इस रिपोर्ट के बाद विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है.

कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया, "नोटबंदी की निंदा करने वालों में आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ एक थीं. मुझे लगता है कि हमें आईएमएफ़ और डॉ. गीता गोपीनाथ पर सरकार के मंत्रियों के हमले के लिए ख़ुद को तैयार कर लेना चाहिए."

उन्होंने एक और ट्वीट किया और कहा कि 4.8 फ़ीसदी का आंकड़ा भी विंडो ड्रेसिंग है.

एक अन्य कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "आईएमएफ ने 2019-20 के लिए भारत की जीडीपी को घटाकर 4.8% कर दिया. ये भी कहा है कि इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था नीचे जाएगी. पूरे भारत में लोग, युवा और बूढ़े प्रदर्शन कर रहे हैं, (जो अपने पहने कपड़ों से पहचाने नहीं जा सकते), मोदी और अमित शाह की जोड़ी भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रही है."

आईएमएफ़ की प्रमुख अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ भारतीय मूल की हैं और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर रही हैं. उन्होंने इंटरनेशनल फ़ाइनेंस और मैक्रोइकोनॉमिक्स में रिसर्च की है.

आईएमएफ़ में इस पद पर पहुंचने वाली गीता दूसरी भारतीय हैं. उनसे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी आईएमएफ़ में प्रमुख अर्थशास्त्री रह चुके हैं.

केरल सरकार ने गीता को साल 2017 में राज्य का वित्तीय सलाहकार नियुक्त किया था. गीता का जन्म केरल में ही हुआ था. जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने गीता की नियुक्ति की थी तो उस समय उन्हीं की पार्टी के कुछ लोग नाराज़ भी हुए थे.

गीता ने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा भारत में पूरी की. गीता ने साल 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की.

इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में हीमास्टर डिग्री पूरी की. साल 1994 में गीता वाशिंगटन यूनिवर्सिटी चली गईं.

साल 1996 से 2001 तक उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की.

गीता ने व्यापार और निवेश, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट, मुद्रा नीतियां, कर्ज़ और उभरते बाज़ार की समस्याओं पर लगभग 40 रिसर्च लेख लिखे हैं.

गीता साल 2001 से 2005 तक शिकागो यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थीं. इसके बाद साल 2005 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई.

साल 2010 में गीता इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बनीं और फिर 2015 में वे इंटरनेशनल स्टडीज़ एंड ऑफ़ इकनॉमिक्स की प्रोफ़ेसर बन गईं.

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